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इस पोस्ट में प्रत्यक्ष जान के बारे में बताया गया है। प्रत्यक्ष ज्ञान क्या होता है और अर्थ एवं प्रकार ये यूजीसी नेट के पेपर 1 यूनिट 6 का टॉपिक है।

प्रत्यक्ष ज्ञान :- भारतीय दर्शन के सन्दर्भ में, प्रत्यक्ष, तीन प्रमुख प्रमाणों में से एक है। यह प्रमाण सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। 'प्रत्यक्ष' का शाब्दिक अर्थ है- वह वस्तु जो आँखों के सामने हो। यहाँ 'आँख' से तात्पर्य सभी इंद्रियों से है।

प्रत्यक्ष का अर्थ होता है - प्रति+अक्ष

प्रति का अर्थ 'सामने'

अक्ष का अर्थ 'आँख',

यानी प्रत्यक्ष का अर्थ 'आँख के सामने' होता है। यहा अक्ष का अर्थ संकुचित न लेते हुए व्यापक अर्थ पाँच इंद्रिय (आँख, कान, नाक, जिह्वा, त्वचा) के सामने अर्थात पाच इंद्रियों के समक्ष होने वाले ज्ञान को प्रत्यक्ष ज्ञान कहते हैं।

प्रत्यक्ष ज्ञान भी दो प्रकार का हैंI

1-सांव्यवहारिक

2- पारमार्थिक

1-सांव्यवहारिक:- इंद्रिय ज्ञान सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष ज्ञान है

2- पारमार्थिक:- इंद्रिय आदि पर पदार्थों से निरपेक्ष केवल आत्मा में उत्पन्न होने वाला ज्ञान पारमार्थिक प्रत्यक्ष है ।