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इस पोस्ट में UGC NET UNIT-1, शिक्षण अभिक्षमता के महतपुर टॉपिक शिक्षण के स्तर यानि level of teaching के बारे में बताया गया है जो कि यूनिट 1 के लिए बहुत महत्पूर्ण है, धन्यवाद।

Level of Teaching (टीचिंग के स्तर)- टीचिंग के मुख्यत तीन लेवल होते है, जिसके आधार पर छात्रों को टीचिंग प्रक्रिय का क्रियान्वयन किया जाता हैं। जिसके आधार पर बालकों का बौद्धिक और मानसिक विकास किया जाता हैं।

1. स्मृति स्तर (Memory Level)

2. बोध स्तर (Understanding Level)

3. चिंतन स्तर (Reflective Level)

Memory level of Teaching (टीचिंग का स्मृति लेवल)- यह बाल्यावस्था एव शिशुअवस्था में प्रदान करवाई जाती है क्योंकि इसमें बालक का बौद्धिक विकास अपने शुरुआती दौर में होता हैं।

स्मृति स्तर के शिक्षण की प्रमुख विशेषताएँ :-

1- स्मृति स्तर का शिक्षण विचारहीन होता है।

2- स्मृति स्तर के शिक्षण में शिक्षक का स्थान प्रमुख होता है और छात्रों का गौण।

3- इसमें छात्र बिना समझे या विचार किये तथ्यों या सूचनाओं को रट लेते हैं।

4- शिक्षक तथा छात्रों के बीच किसी प्रकार की सार्थक अन्तःक्रिया नहीं होती है।

5- स्मृति स्तर के शिक्षा में बौद्धिक क्रियाओं का अभाव रहता है।

6- स्मृति स्तर के शिक्षण में कार्य करने या सोचने की स्वतंन्त्रता नहीं, छात्र केवल शिक्षक के निर्देशों का पालन करते हैं।

7- कक्षा का वातावरण नीरस रहता है।

8- इस प्रकार के शिक्षण में व्याख्यान, प्रदर्शन व पुस्तक पाठन विधियों का प्रयोग किया जाता है।

9- कम समय में अधिक ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

शिक्षण का समझ-स्तर (Understanding Level)-समझ-स्तर का शिक्षण स्मृति के शिक्षण से आगे की अवस्था है। इस स्तर के शिक्षण के लिए आवश्यक है दूसरे शब्दों में, इसमें स्मृति तथा अन्तर्दृष्टि (Insight) दोनों सम्मिलित होती है। बोध स्तर का शिक्षण करते समय शिक्षक तथा विद्यार्थी दोनों ही पाठ के विकास में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।

समझ स्तर शिक्षण की प्रमुख विशेषताएँ:-

1- इस प्रकार का शिक्षण विचारयुक्त होता है।

2- यह शिक्षण बोध या समझ पर आधारित / केन्द्रित होता हैं।

3- इस प्रकार के शिक्षण में व्याख्या करना, बुद्धि युक्त व्यवहार करना, प्रत्यास्मरण करना तथा पहचानना आदि व्यवहार सम्मिलित होते हैं।

4- कक्षा कक्ष में अन्तःक्रिया द्वारा छात्रों को प्रत्यय का बोध कराया जाता हैं।

5-यह शिक्षण छात्रों में सामान्यीकरण, समस्याओं के समाधान या सूझबूझ से निर्णय लेने की क्षमता विकसित करता है।

6- इस प्रकार के शिक्षण में शिक्षक प्रायः आगमन-निगमन विधि या विश्लेषण-संश्लेषण विधि का प्रयोग करता है।

7- बोध स्तर के द्वारा प्राप्त ज्ञान अधिक प्रभावपूर्ण एवं स्थायी होता है।

8- बोध स्तर में शिक्षक पाठ्यवस्तु का विश्लेषण कर उसके तत्त्वों को तर्कपूर्ण व मनोवैज्ञानिक ढंग से व्यवस्थित करके प्रस्तुत करता है।

9- इसमें छात्र पुस्तकालय, प्रयोगशाला, पर्यटन व इंटरनेट या अन्य स्रोतों द्वारा आँकड़े एकत्रित करता है। अतः वह अधिक सक्रिय रहता है।

शिक्षण का चिंतन स्तर (Reflective Level Teaching):- शिक्षण का तीसरा और अन्तिम स्तर है। यह प्रथम दो स्तरों से अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें स्मृति तथा समझ दोनों सम्मिलित होते हैं। परावर्तन-स्तर पर समस्या केन्द्रीय अनुदेशन सम्पन्न होती है। विद्यार्थी परम्परागत ढंग से न सोचकर कल्पनात्मक एवं सर्जनात्मक चिन्तन का सहारा लेते हुए विविध परिस्थितियों का सम्यक् अन्वेषण करने एवं उनके विद्यमान समस्याओं का हल प्राप्त करने के प्रति अग्रसर होते हैं।

चिंतन-स्तर के शिक्षण की विशेषताएँ:-

1 - चिंतन-स्तर, शिक्षण का सर्वोच्च स्तर का होता है और पूर्णतः विचारपूर्ण है।

2-परावर्तन-स्तर पर शिक्षण समस्या केन्द्रित होता है।

3- इस स्तर पर छात्रों में जिज्ञासा, रुचि, अन्वेषण और अध्यवसाय विकसित होता है, जिसके द्वारा वे समस्याओं का वैज्ञानिक समाधान ढूँढ़ पाने में सफल होते हैं।

4- परावर्तन-स्तर के शिक्षण में सामूहिक वाद-विवाद ही शिक्षण की प्रभावशाली व्यूह रचना (Steratgy) मानी जाती है।

5- इस स्तर के शिक्षण में छात्र की आयु तथा परिपक्वता का अधिक महत्त्व होता है। उच्च कक्षाओं के स्तर पर यह शिक्षण अधिक उपयोगी है।

6- बिग्गी महोदय के अनुसार “चिंतन-स्तर का अध्ययन कक्षा में सजीव, उत्तेजक, प्रेरणादायी, सक्रिय समालोचनात्मक तथा संवेदनशील वातावरण को जन्म देती है जो नवीन और मौलिक चिन्तन को प्रोत्साहित करता है।”

7- इस स्तर के शिक्षण में छात्र तथा शिक्षकों के सम्बन्ध निकट के होते हैं। छात्र शिक्षक की आलोचना भी कर सकते हैं।

8- इस स्तर के शिक्षण को पाठ्यक्रम, पाठ्यवस्तु तथा पाठ्यपुस्तकों तक ही सीमित नहीं रखा जाता है बल्कि पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं को भी महत्त्व दिया जाता है।

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